महापुरुष
में आज बात उस शख्सियत की ज़िसने अपनी ढ़लती उम्र में युवा पीढी को क्रांति का
संदेश दिया …… क्रांति ऐसी जिसमें हिंसा का स्थान नही था केवल अन्यायपूर्ण शासन का
विरोध था …… उस शख्स की बात करेंगे आज जिसकी एक आवाज़ पर
पूरा देश संपूर्ण क्रांति के लिए खडा हो गया ……… जीहां
…. ये थे जन नायक जयप्रकाश नारायण ….… अपने आप
में रौशनी का एक पूर्ण पुंज थे जयप्रकाश …… आइये आज इसी महापुरुष के महान वय्क्तित्व से रौशनी
की कुछ किरणें इकठ्ठा करते हैं ……..
जयप्रकाश
नारायण........केवल एक हाड़ मांस का व्यक्ति नहीं....एक पूरा संस्थान है…… एक शख्यिसत......एक सोच
....एक नजरिया है जो विविधताओं से भरे भारत को लोकतंत्र की राहों पर अडिग और अटल
बनाये है……… दऱअसल
इस महान व्यक्तित्व को समझने के लिए उसका बचपन भी समझना होगा ………
जननायक को समझने के लिए
जेपी के जीवन को समझना जरुरी है। सबसे पहले आइये झाकंते हैं जेपी के बचपन में । जयप्रकाश
नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के
सारण जिले के सिताबदियारा गाँव में हुआ । ...पिता हर्सुल दयाल श्रीवास्तव और माता
फूल रानी की चौथी संतान थे जेपी । ....बालक जयप्रकाश ने 9 साल
की उम्र में अपना गाँव छोड़ दिया और पटना में कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला ले लिया ।
...........स्कूल के दिनो में उन्हें सरस्वती, प्रभा और
प्रताप जैसी पत्रिकाओं को पढने का मौका मिला। जेपी ने बहुत कम उम्र में ही भारत-भारती,
मैथिलीशरण गुप्त और भारतेंदु हरिश्चंद्र के कविताओं को भी पढ़ा । साथ
ही उन्होने ‘भगवत गीता’ को भी आत्मसात
किया । ......................1920 में जयप्रकाश की उम्र कोई
18 साल रही होगी ...तभी उनका विवाह प्रभावती देवी से कर दिया
गया । जयप्रकाश अपनी पढाई में व्यस्त थे इसलिए पत्नी को अपने साथ नहीं रख सके। प्रभावती
विवाह के उपरांत कस्तूरबा गांधी के साथ गांधी आश्रम मे रहीं।.............इऩ्ही
दिनों देश में असहयोग आंदोलन चल पड़ा । गांधी के आहवान लोगों ने अंग्रेजों से
जुड़ी हर संस्था के साथ शांतिपूर्ण असहयोग शुरु कर दिया। ...........इन्ही दिनो मौलाना
अबुल कलाम आजाद के भाषण से प्रभावित होकर जेपी ने अंग्रेज़ी संस्थान पटना कॉलेज
छोड़कर ‘बिहार विद्यापीठ’ में दाखिला ले
लिया।................. 1922 में जयप्रकाश आगे की पढ़ाई के
लिए अमेरिका चले गए। 1923 में बर्कले विश्वविद्यालय में अपनी
पढाई का खर्चा उठाने के लिए उन्होंने खेतों, कंपनियों,
रेस्टोरेन्टों में भी काम किया ।....... इसी दौरान उन्हें श्रमिक
वर्ग की परेशानियों का ज्ञान हुआ और वे मार्क्स के समाजवाद से प्रभावित होकर
साम्यवादी बन गए । .............युवा जयप्रकाश में स्वतंत्रता की लड़ाई में कूदने
का अंकुर फूट चुका था...................
जयप्रकाश नारायण की
देशभक्ति तिरंगे में शामिल रंगो को भी परिभाषित करती है और देशवासियों की ज़रुरत
को भी …….. जयप्रकाश नाराय़ण की शख्सियत पर गांधी का प्रभाव
है तो कार्ल मार्क्स की साम्यावादी सोच के साथ पटवर्धन और मसानी जैसे समाजवादियों का
असर भी …….. दरअसल जेपी ने उन सभी मुल्यों को अपने पास समेटा
जो इंसानों का भला कर सकते है……..
iSdt 2……………..जयप्रकाश नारायण जब 1929 में
अमेरिका से लौटे तब स्वतंत्रता संग्राम तेज़ हो चुका था।............जेपी जवाहर
लाल नेहरु और महात्मा गाधी के संपर्क में आए और स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन
गए। ...1932 मे सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान जब गांधी,
नेहरु समेत अन्य महत्वपूर्ण कांग्रेसी जेल चले गए तब उन्होने भारत
के अलग-अलग हिस्सों मे आन्दोलन को दिशा दी। .....ब्रिटिश सरकार ने अन्ततः उन्हें
भी मद्रास में सितंबर 1932 मे गिरफ्तार कर लिया गया और नासिक
जेल भेज दिया।........... नासिक जेल में उनकी मुलाकात अच्युत पटवर्धन, एम. आर. मासानी, अशोक मेहता, एम.
एच. दांतवाला, और सी. के. नारायणस्वामी जैसे नेताओं से हुई। ..........इन
नेताओं के विचारों ने कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी की नींव रखी। ..............द्तीय
विश्वयुद्ध के दौरान जेपी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया और
ऐसे अभियान चलाये जिससे सरकार को मिलने वाला राजस्व रोका जा सके।.......नतीजा उन्हें
एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया। 9 महीने की कैद की सज़ा
सुनाई गई।..जयप्रकाश नारायण ने आंज़ादी के सच्चे सिपाही के रुप में खुदद को और
अपने परिवार को झोक दिया।.......... लीक से हटकर जेपी ने महात्मा गांधी और सुभाष
चंद्र बोस के बीच मतभेदों को सुलझाने का प्रयास भी किया।......... 1942 में ‘भारत छोडो’ आंदोलन के
दौरान वे पकड़े गए ...जेल में डाल दिए गए लेकिन मका देखकर वो हजारीबाग जेल से फरार
हो गए ......
महानायक......जननायक……जयप्रकाश ने बदलाव का वो प्रकाश बिखेरा जिससे भारतीय लोकतंत्र अलौकिक हो उठा……. भारतीय जनतंत्र की जडो में जेपी ने क्रांति का वो खाद बीज डाला कि जनता
का विश्वास जी उठा........जीहां जेपी का संपूर्ण क्रांति का
उदघोष.......सबकुछ बदलने का आहवान……
जिसने उन्हे लोकनायक बना दिया…… बात
जयप्रकाश की हो और संपूर्ण क्रांति का संस्मरण न हो....तो जेपी की उपयोगिता ही
क्या रहेगी….. ऐसे ही नहीं कहते जेपी इज
आंदोलन एंड आंदोलन इज़ जेपी..................साल 1974 था जेपी ने पटना के गांधी
मैदान में तबकी अत्याचारी और अलोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ बदलाव का बिगुल फूंक
दिया……
देश को 1947 में आजादी मिल
गई। भारत में संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की गई ........देश की संसद की बागडोर
देशवासियों ने चुने हुए प्रतिनिधियों के हवाले कर दी..........लेकिन साल दर साल सरकारों
ने अपना किरदार गिराकर जनता जनार्धन से विश्वासघात शुरु कर दिया । घोटाले और
षड़यंत्र की कई कहानिया लिखी गई ।......देश और समाज का बहुत नुकसान हुआ ।......एक
तरफ महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से दो चार आम जनता थी
,,,,,दूसरी तरफ उनकी समस्याओं का मकौल
उड़ाती व्यवस्था थी। ................ ऐसे समय में जय प्रकाश नारायण ने अपना
राजनीतिक संयास त्याग दिया और देशवासियों के साथ खड़े हो गए । ............युवाओं से....अधेड़
से.....बुजुर्गों से महिलाओं से आहवान किया ........सारी समस्याएं दूर करने के लिए
.....सम्पूर्ण व्यवस्था को बदल डालें । ...फिर क्या था पटना के गांधी मैदान में
जेपी के बुलावे पर जनसमूह उमड़ पड़ा । .....जेपी ने सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन
के लिए सम्पूर्ण क्रान्ति का श्रीगणेश कर दिया । .........पूरी तरह अहिंसावादी
आंदोलन......की सूरत को देखकर कुछ लोगों ने जेपी को आजाद भारत के गांधी की उपाधि भी
दी।.....जे.पी. आन्दोलन बिहार से शुरू होकर पूरे भारत में कब फैल गया पता ही नहीं
चला।........जे.पी. कभी कांग्रेस के सहयोगी जरुर रहे थे लेकिन आजादी के लगभग दो
दशक बाद इंदिरा सरकार के भ्रष्ट व अलोकतांत्रिक तरीकों ने उन्हें कांग्रेस और
इंदिरा के विरोध में खड़ा कर दिया।..........क्रांति ने सत्ता का गुमान तोड़ दिया...........इसी
बीच इंदिरा गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया ...........जयप्रकाश
ने विपक्ष को एकजुट कर उनके इस्तीफे की मांग की।........ प्रधानमंत्री इंदिरा
गांधी ने राष्ट्रीय जून 1975 में आपातकाल लागू कर दिया और जे.पी. समेत हजारों विपक्षी
नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया।.............लेकिन सलाखों से कहीं जनभावना का
सैलाब रुकता है भला................जनवरी 1977 को इंदिरा
गाँधी सरकार को आपातकाल हटाने का फैसला करना पड़ा। ............मार्च 1977 में चुनाव हुए और लोकनायक के “संपूर्ण क्रांति आदोलन”
से उतपन्न इंदिरा विरोधी लहर ने भारत में पहली बार गैर कांग्रेसी
सरकार गठित कर दी ।
मंहगाई ,भ्रष्टाचार….. समाजिक समरसता जैसे मुद्दे सत्ता के गलियारे में हाशिये पर थे….. तब जेपी ने व्यवस्था बदलने के लिए हुंकार भरी और सत्ताधारियों की नींद और
उनका चैन छीन लिया …… 5 जून 1974 की तारीख भारतीय इतिहास का
यादगार हिस्सा बन गयी….. लेकिन क्या संपूर्ण क्रांति का
लक्ष्य केवल इंदिरा शासन का अंत करना भर था …..
. ........लोकनायक नें कहा था सम्पूर्ण
क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल है .............राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक,
बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक क्रांति । ये
कह सकते हैं कि इन सातों रंगों से मिलकर बनी है सम्पूर्ण क्रान्ति।...................पटना
के गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण ने जब संपूर्ण क्रांति का आहवान किया ...तो मैदान
में उपस्थित लाखों लोगों ने जात-पात, तिलक, दहेज और भेद-भाव छोड़ने का संकल्प लिया था। ………उसी मैदान में हजारों-हजार ने अपने जनेउ तक तोड़ दिये थे।.................क्रांति की व्यापकता को समझने के लिए उस
समय दिये गए नारो को भी समझिए..................तब नारा गूंजा था...............जात-पात
तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो..........समाज के प्रवाह को नयी
दिशा में मोड़ दो.......।.... ….बदलाव हुआ भी । समाज का
प्रवाह बदल गया..................सम्पूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक थी कि
केन्द्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा । ..............जेपी के हुंकार
पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था।....बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति
की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी।......सियासी उपलब्धि की
नज़र से देखे तो तब जनता के हितों को आगे रखने वाली सरकार बनी।............. इंडिया
गेट पर मोरारजी देसाई की सरकार को जेपी ने शपथ दिलाई और अपने सपनों को साकार होते
देखा..........लेकिन ठीक उसी तरह अस्पताल में अंतिम सांसे गिनते इस सपने को चूर
चूर होते भी देखा........जेपी ने देखा कैसे सत्ता संघर्ष ने कांग्रेस के खिलाफ बने
इस विशाल गठजोड़ को बिखेर दिया........., कैसे मोरारजी
देसाई हटाए गए........... कैसे चरण सिंह आए..... कैसे जगजीवन राम को सामने रखकर
फिर चुनाव लड़ा गया और कैसे इंदिरा गांधी दोबारा भारी बहुमत से सत्ता में लौट आईं।
..........यानी जनता पार्टी के बनने से लेकर बिखरने तक की पूरी कहानी जेपी ने जीते
जी देखी......... .......जनता पार्टी की सरकार जेपी के
सपनों को जी नहीं सकी......................कांति ने जेपी क नाम पर सियासत चमकाने
वाले बड़े बड़े नाम दिए लेकिन इनमें उनके सिद्धांतों का वारिस ढ़ूढ़े नहीं मिलता ।
..............उदाहरण के तौर पर बिहार के मौजूदा सियासी फलक पर चमकने वाले सितारे
लालू प्रसाद ,,नीतीश कुमार .......रामविलास पासवान और सुशील मोदी सभी उसी छात्र
युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा है जिसने तब जेपी के साथ देश की सबसे बड़ी क्रांति
में आगे रहकर भाग लिया । .....लेकिन ये सभी जनता के दिये अवसर के बावजूद हर तरह के
समझौतो में जुटे हैं....कोई परिवार की चिंता में डूबा है ...कोई जात और जमात की
...किसी को सत्ता के शिखर पर अपनी मौजूदगी का हर पल इंतजार है तो कोई सियासत की
पगडंडियों पर सबकुछ तिलांजली दे चुका है। ...................... कैसे
गठबंधन की राजनीति के भरोसे देश की सियासत अलग अलग मुकामों से होकर आज कहां आ
पहुंची................ये जेपी की ‘संपूर्ण क्रांति’
तो नहीं।

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